यजुर्वेद संहिता
यजुर्वेद का प्रतिपाद्य विषय याज्ञिक कर्मकाण्ड है तथा इसका ऋत्विक् अध्वर्यु है । यजुर्वेद संहिता के मुख्य देवता वायु और आचार्य - वेदव्यास के शिष्यवैशम्पायन हैं । महाभाष्य , चरणव्यूह एवं पुराणों के अनुसार यजुर्वेद की १०० , १०१ , १०९ , ८६ आदि शाखाओं का पता चलता है । यजुर्वेद संहिता , यजुसों का संग्रह है । यजुर्वेद का अर्थ है - ‘यजुषां वेदः’ । यजुष् का अर्थ है - ‘इज्यतेऽनेनेति यजुः’ अर्थात् जिन मन्त्रों से यज्ञ यागादि किए जाते हैं, ‘अनियताक्षरावसानो यजः’ अर्थात् जिसमें अक्षरों की संख्या नियत न हो । इसके अतिरिक्त - ‘गद्यात्मको यजुः’ एवं ‘शेषे यजुः शब्दः’ का तात्पर्य यही हैकि ऋक् और साम से भिन्न गद्यात्मक मन्त्रों का अभिधान ‘यजुष्’ है ।
शुक्ल यजुर्वेद एवं कृष्ण यजुर्वेद पर निम्नलिखित शाखाएँ प्रसिद्ध हैं -
- शुक्ल यजुर्वेद - वाजसनेयी या माध्यन्दिन और काण्व शाखा ।
- कृष्ण यजुर्वेद - तैत्तिरीय , मैत्रायणी , कठ और कपिष्ठल शाखा ।
यजुर्वेद के वर्ण्य -विषय का ज्ञान मात्र वाजसनेयी संहिता के अध्ययन से हो सकता है , क्योंकि यह संहिता यजुर्वेद की प्रतिनिधि है । इसमें मुख्य रूप सेवैदिक कर्मकाण्ड का ही प्रतिपादन है तथा इसमें ४० अध्याय हैं । इसमें १ से २५ अध्याय तक महान् यज्ञों का वर्णन है । लेकिन १४ अध्याय ‘खिल’ नाम सेप्रसिद्ध होने के कारण अवान्तरयुगीन माने जाते हैं । इसका ३४वाँ अध्याय ‘शिवसंकल्पसूक्त’ और ४०वाँ अध्याय ‘ईशावस्योपनिषद्’ के नाम से प्रसिद्ध है ।यही एकमात्र , वह सर्वप्राचीन उपनिषद है , जो संहिता का भाग है , इस विवरण से स्पष्ट हो जाता है कि यजुर्वेद का मुख्य प्रतिपाद्य विषय विभिन्न यज्ञों कासम्पादन ही है ।
- तैत्तिरीय शाखा में ७ काण्ड , ४४ प्रपाठक और ६३१ अनुवाक हैं ।
- मैत्रायणी शाखा में ४ काण्ड , ५४ प्रपाठक और २११४ मन्त्र हैं ।
- कठ शाखा में ४० स्थानक और ८४३ अनुवाक हैं ।
- कपिष्ठल शाखा में ८ अष्टक और ४८ अध्याय हैं ।
॥ इति ॥
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