ऋग्वेद संहिता

ऋग्वेद विश्व साहित्य का प्राचीनतम ग्रन्थ है  यह विभिन्न देवताओं के स्तुतिपरक मन्त्रों का संकलन है और इसकी उत्पत्ति विराट पुरूष के मुख से मानी गईहै  जिसके द्वारा देवता की स्तुति अथवा अर्चना की जाए , उसे ऋक् कहते हैं - ऋच्यते स्तूयते यया इति ऋक्’ और ऐसी ऋचाओं के संग्रह का नाम हीऋग्वेद है ।इसके पुरोहित ‘होता’ है , जो कि देवताओं का आह्वान करता था 


ऋग्वेद में ‘ज्ञान’ की महत्ता का प्रतिपादन किया गया है  ऐसा माना जाता है कि सृष्टि के आरम्भ में ईश्वर ने वेदों का ज्ञान अग्नि , वायु , आदित्य , औरअंगिरा नामक चार ऋषियों को प्रदान कर दिया था  इसी कारण ऋषियों को मन्त्रों का द्रष्टा कह गया , स्रष्टा नहीं - ऋषयो मन्त्रदृष्टारः  स्रष्टारः’ मन्त्रदृष्टा इन ऋषियों ने गुरू शिष्य परम्परा का निर्वाह करते हुए इन मन्त्रों को अपने शिष्यों को दिया  चिरकाल तक इनका मौखिक रूप से ही सम्प्रेषणहोता रहा  अतः ये मन्त्र श्रुति भी कहे गए लेकिन बाद में जब यह ज्ञान विस्मृत होने लगा तब इसको लिपिबद्ध कर दिया गया  इस प्रकार मन्त्रों का संग्रहकिेए जाने के कारण वेदों को संहिता के नाम से जाना जाता है  

ऋग्वेद में १० मण्डल , १०१७ सूक्त और  १०५८० ,/ मन्त्र हैं 


महाभाष्यकार पतञ्जलि ने ऋग्वेद की २१ शाखाएँ मानी हैं - एकविंशतिधा वाहवृच्यम्’ जिनमें शाकल , वाष्कल , आश्वलायिनी , शांखायनी तथामण्डूकायनी प्रमुख शाखाएं हैं 


यास्क ने निरूक्त में देवताओं को तीन भागों में रखा है -


 पृथ्वी - स्थानीय देवता   अग्नि , सोम , पृथ्वी आदि 


 अन्तरिक्ष - स्थानीय देवता   इन्द्र , रूद्र , आदि 


 द्यु - स्थानीय देवता   वरूण , मित्र , उषस् , सूर्य आदि 


इस प्रकार ऋग्वेद में कुल ३३ देवताओं की स्तुतियाँ की गई हैं ; जिनमें इन्द्र तथा अग्नि का सर्वप्रथम स्थान है  ऋग्वेद में लगभग २० सूक्त ऐसे हैं जिन्होंसंवाद सूक्त कहा जाता है  इनमें प्रमुख सूक्त निम्नलिखित हैं -


  • पुरूरवा - उर्वशी संवाद ( १० / ९५ )


  • सरमा - पणि संवाद   १० / १०८ )


  • इन्द्र - वरूण संवाद (  / १२ )


  • इन्द्र - इन्द्राणी संवाद  १० / ८६ )


  • यम - यमी संवाद  १० / १० )


  • विश्वामित्र - नदी संवाद   / ३३ )


  • सोम - सूर्य संवाद  १० / ८५ )


  • देवगण - अग्नि संवाद ( १० / ५२ )


विषयवस्तु की दृष्टि से ऋग्वेद के समस्त सूक्तों को मुख्यतया दस वर्गों में रखा जा सकता है - देवता सूक्त , ध्रुवपद , कथा , संवाद , दानस्तुति , तत्वज्ञ , संस्कार , मान्त्रिक , लौकिक और आप्रीसूक्त  कुछ विद्वानों ने इन्हें -  ऋषिसूक्त , देवतासूक्त , अर्थसूक्त तथा छन्दसूक्त , इन चार विभागों में रखा है  


इन विविध - विषयों का सन्निवेश होने के कारण ऋग्वेदअन्य वेदों की अपेक्षा अधिक गौरवमय है  यजुस् , साम एवं अथर्व संहिताओं , ब्राह्मण औरआरण्यक के अन्तर्गत जिन विषयों का विवेचन किया गया है , वे सभी मूल रूप से ऋग्वेद में निहित हैंचाहे वह प्राणविद्या या प्रतीकोपसना या ब्रह्मविद्या हो इसके अतिरिक्त ऋग्वेद के प्रथम मण्डल के १६४ वें सूक्त में लगभग ५२ ऋचाएँ प्रहेलिका के रूप में दी गई है  इन मन्त्रों में पहेलियाँ रहस्यात्मक औरप्रतीकात्मक भाषाओं में दी गई हैं  कई स्थनों पर तो संकेत इतने गूढ़ हैं कि उनका अर्थ समझना असम्भव लगता है  इन प्रहेलिका ऋचाओं के ऋषिदीर्घतमा हैं  ऋग्वेद में १२ दार्शनिक सूक्त हैंजिनमें मुख्यरूपेण पुरूषसुक्त १० / ९० ); हिरण्यगर्भ सूक्त ( १० / १२१ ) तथा नासदीय सूक्त ( १० / १२९सृष्टि की उत्पत्ति के विषय में विस्तार से विचार करते हैं  इसमें कोई भी विषय ऐसा नहीं है जो ऋग्वेद से अछूता हो  ऋग्वेद का प्रारम्भ अग्निसूक्त सेतथा समापन संज्ञानसूक्त से किया गया है 



॥ इति ॥



हम आशा करते हैं , कि हमारे द्वारा उपलब्ध कराई गई जानकारी आपके लिए सहायक होगी 


                 संस्कृत भाषा के बारे में और अधिक पढ़ने के लिए हमारे साथ जुड़े रहें 

            


                                   आपका दिन शुभ हो ! 

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