संस्कृत भाषा में स्वरों के भेद
यहाँ पर संस्कृत भाषा में स्वरों के भेदों का विस्तृत वर्ण करेंगे ।
१ उच्चारण के अनुसार स्वरों के तीन भेद होते हैं -
ऊकालोऽज्झ्स्वरदीर्घप्लुतः । १ । २ । २७ ॥
अर्थात् एकमात्र ( उ ) , द्विमात्र ( ऊ ) और त्रिमात्र ( ऊ३) इन तीनों उकारों के उच्चारण काल के समान उच्चारण काल हैं । जिससे वह अच् क्रम से ह्रस्व , दीर्घ , प्लुत संज्ञावाला है । अर्थात् एकमात्र स्वर की ह्रस्व , दो मात्रा वाले स्वर की दीर्घ और तीन मात्रा वाले स्वर की प्लुत संज्ञा होती है ।
२ उच्चारण स्थानों के अनुसार स्वरों के तीन भेद हैं -
( अचां त्रैविध्यनिरूपणम् )
स प्रयकमुदात्तादिभेदेन त्रिधा ।
१ उॅच्चैरूदात्तः । १ । २ । २९ ॥
उच्चैः अर्थात् कण्ठ तालु आदि सखण्ड स्थानों के ऊपर के भाग से जिस अच् (स्वर) की उत्पत्ति होती है उसको उदात्त कहा जाता है ।
२ नीच्चैरॅनुदात्तः । १ । २ । ३० ॥
नीचैः अर्थात् कण्ठ तालु आदि सखण्ड स्थानों के नीचे के भाग से जिस अच् का उच्चारण होता है वह अनुदात्त होता है ।
३ समाहारः स्वरितः । १ । २ । ३१ ॥
समाहार अर्थात् उदात्तत्व और अनुदात्तत्व दोनों धर्मों का मेल जिस वर्ण में हो वह स्वरित होता है ।
/ अर्थात् तालु आदि स्थानों के मध्यभाग से जिस अच् का उच्चारण होता है उसे ‘स्वरित’ कहते हैं ।
उपरोक्त दिये गये स्वरों के प्रकारों का प्रयोग संहिता पाठ में किया जाता है ।
॥इति॥
हम आशा करते हैं , कि हमारे द्वारा उपलब्ध कराई गई जानकारी आपके लिए सहायक होगी ।
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