सामवेद संहिता
साम का अर्थहै - ‘गान’ । ऋग्वेद के मन्त्र जब विशिष्ट गान पद्धति से गाए जाते हैं तो उनको साम कहा जाता है । वस्तुतः ऋग्वेद की ऋचाओं का लयबद्धगान ही साम है । सामवेद का प्रमुख विषय उपासना है । इसमें सोमयाग सम्बन्धी मन्त्रों का संकलन है । इसका ऋत्विक् उद्गाता और देवता सूर्य है ।
वर्तमान में राणायनीय , कौथुमीय तथा जैमिनीय , ये तीन शाखाएँ उपलब्ध हैं ।
सामवेद को दो भागो में विभक्त किया गया है -
१ पूर्वार्चिक
२ उत्तरार्चिक ।
यहाँ पर आर्चिक से अभिप्राय ऋचाओं के संग्रह से है । पूर्वार्चिक में कुल ६ प्रपाठक हैं तथा उत्तरार्चिक में ९ प्रपाठक हैं ।इन प्रपाठकों का विभाजनअध्यायों और खण्डों में हुआ है । प्रत्येक खण्ड में एक देवता या एक छन्दपरक ऋचाएं हैं ।
पूर्वार्चिक का प्रथम प्रपाठक अग्नि से सम्बद्ध होने के कारण अग्निपर्व या आग्नेयपर्व भी कहा जाता है । द्वितीय से चतुर्थ प्रपाठक में इन्द्र से सम्बन्धितऋचाएँ हैं , जो ऐन्द्रपर्व कहलाता है । पञ्चम प्रपाठक का सम्बन्ध पवमान ( सोम ) से है , जिसे ‘पवमान पर्व’ कहते हैं । षष्ठ प्रपाठक को ‘अरण्यपर्व’ कीसंज्ञा गी गई है क्योंकि इस प्रपाठक की ऋचाएँ अरण्यगान के ही योग्य हैं ; जबकि प्रथम पाँच प्रपाठक तक की ऋचाओं को गाँवों में गाया जा सकता है, जिन्हें ग्रामगान कहते हैं ।
गान चार प्रकार के होते हैं -
१ ग्राम या गेय गान
२ अरण्यगान
३ ऊहगान
४ ऊहृा ( रहस्य ) गान ।
उत्तरार्चिक के अनेक मन्त्र पूर्वार्चिक से लिए गए हैं । इसमें सात प्रमुख अनुष्ठानों का निर्देश है -
- दशरात्र
- संवत्सर
- एकाह
- अहीन
- सत्र
- प्रायश्चित
- क्षुद्र ।
इसमें प्रत्येक मन्त्र की लय , तान को याद करने का वर्णन विद्यमान है ।
पूर्वार्चिक में कुल ६५० मन्त्र और उत्तरार्चिक में ११२५ मन्त्र हैं ।
सामवेद में सामविकार भी पाए जाते हैं जिन्हें गान करते समय कुछ घटाया -बढ़ाया भी जाता है । ये छः प्रकार के होते हैं -
- विकार
- विश्लेषण
- विकर्षण
- अभ्यास
- विराम
- स्तोभ
इसके अतिरिक्त यज्ञ सम्पादन के समय पाँच प्रकार के साम-मन्त्र भी गाए जाते हैं -
- प्रस्ताव
यह मन्त्र का प्रारम्भिक भाग होता है , जो ‘हुँ’ से प्रारम्भ होता है । इसे प्रस्तोता नामक ऋत्विक् गाता है ।
- उद्गीथ
इसे साम का प्धान ऋत्विक् उद्गाता गाता है । इसमें प्रारम्भ में ‘ॐ’ लगाया जाता है ।
- प्रतीहार
इसका अर्थ है , दो को जोड़ने वाला । इसे प्रतिहर्ता नामक ऋत्विक् गाया करता है ।
- उपद्रव
इसे उद्गाता नामक ऋत्विक गाता है ।
- निधन
इसमें मन्त्र के दो पादांश या ॐ रहता है । इसका गायन तीनों ऋत्विक् ( प्रस्तोता , उद्गाता , प्रतिहर्ता ) एक साथ करते हैं ।
॥ इति ॥
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