अथर्ववेद संहिता
अथर्ववेद का अर्थ है - अथर्वों का वेद या अभिचार मन्त्रों का ज्ञान अथर्वन् ऋषि के नाम पर इस वेद का नाम अथर्ववेद पड़ा । इसे भृग्वंगिरा वेद , अथर्वांगिरोवेद , भिषग्वेद , क्षत्रवेद तथा ब्रह्मवेद के नाम से भी जाना जाता है ।इसका ऋत्विक ब्रह्मा है । इस वेद के देवता सोम तथा आचार्य सुमन्तु हैं ।अथर्ववेद को वेदत्रयी ( ऋक् , यजुर्वेद , सामवेद ) की अपेक्षा कम महत्व दिया गया है क्योंकि इसमें अधिकांशतः अभिचारात्मक सूक्त नहीं हैं ।
अथर्ववेद की नौ शाखाएँ हैं -
- पिप्पलाद्
- स्तोद
- मोद
- शौनकीय
- जाजल
- जलद
- ब्रह्मवेद
- देवदर्श
- चारणवैद्य ।
इनमें से सम्प्रति पिप्पलाद और शौनकीय यो दो शाखाएँ ही प्राप्त होती हैं । इसमें २० काण्ड , ७३० सूक्त और लगभग ६००० मन्त्र हैं ।
इस जीवन को सुखमय तथा दुःखरहित बनाने के लिए जिन-जिन साधनों की आवश्यकता होती है ; उनकी सिद्धि के लिए नाना प्रकार के अनुष्ठानों काविधान इस वेद में किया गया है । संहिता के प्रारम्भिक १३ काण्डों का विषय जरण , मरण , उच्चाटनादि से सम्बन्धित है । १४ वें काण्ड में विवाह , १८ वेंकाण्ड में श्राद्ध तथा २० वें काण्ड में सोमयाग से सम्बन्धित मन्त्र दिए गए हैं ; जबकि १९वें काण्ड में राष्ट्रवृद्धि एवं अध्यात्मपरक सूक्त हैं ।अथर्ववेद कीविषय-वस्तु में कुछ सूक्त निम्नलिखित हैं -
- भैषज्य सूक्त -
इसमें रोग , रोगों के लक्षण , निदान एवं जड़ी-बूटियों इत्यादि का १४४ सूक्तों में विवेचन किया गया है ।
- आयुष्य सूक्त -
इसमें स्वास्थ्य एवं दीर्घ जीवन सम्बन्धी प्रार्थनाओं का वर्णन है । इनका प्रयोग पारिवारिक उत्सवों के अवसर पर होता है । मुण्डन संस्कार , उपनयन संस्कार आदि अवसरों पर इनमें सौ वर्ष पर्यन्त जीने के लिए और अनेक प्रकार के रोगों से मुक्ति पाने के लिए प्रार्थना की गई है ।
- पौष्टिक सूक्त -
इन सूक्तों में श्रमिक , कृषक , व्यापारिक , चरवाह और यहाँ तक कि द्यूत-क्रीड़ा में विजय प्राप्त करने की प्रार्थनाएँ की गई हैं ।अनिष्ट निर्वाण , पशुधन की सुरक्षा और अपने व्यवसाय की वृद्धि के लिए प्रयोग में लाए जाने वाले मन्त्रों को पौष्टिक सूक्तकहते हैं ।
- श्रृङ्गार सूक्त -
इन्हें प्रसाद सूक्त भी कहा जाता है । इनमें भय से सुरक्षा , बुराई से बचने , आशीर्वाद एवं प्रसन्नता प्राप्त करने के लिए प्रार्थनाएँहैं ।
- प्रायश्चित सूक्त -
इन सूक्तों में प्रायश्चित का विधान है तथा विभिन्न अपराधों के निवारक मन्त्र हैं । इनमें केवल पाप के लिए ही नहीं अपितु यज्ञऔर उत्सवों में भी गलती हो जाने पर प्रायश्चित ता विधान है ।
- स्त्रीकम सूक्त -
इसमें विवाह एवं प्रेम का निर्देश करने वाले पति-पत्नी में अनुराग को विकसित करने वाली औषधियों व मन्त्रों के बल से अपनेप्रेमी को वश में करने वाले तथा सपत्नी मर्दन करने वाले मन्त्र हैं । इन्हें प्रेम सूक्त भी कहा गया है ।
- राजकर्मा सूक्त -
ये सूक्त राजाओं एवं उनके कार्यों से सम्बन्धित हैं । शत्रु को परास्त करने की प्रार्थनाएँ तथा संग्राम सम्बन्धी दुन्दुभी , शंखादिअनेक साधनों का विवेचन इस सूक्त में प्राप्त होता है ।
- याज्ञिक सूक्त -
अथर्ववेद के २० वें काण्ड में कुछ षज्ञ सम्बन्धी मन्त्र भी हैं । ये सोमयाग का वर्णन करते हैं । ये स्तुति परक मन्त्र ऋग्वेद से लिएगए हैं ।
- कुन्ताप सूक्त -
ये २०वें काण्ड में पाये जाते हैं । इनमें यज्ञ सम्बन्धी दान स्तुतियाँ , राजकुमारों और यजमानों की उदारता की प्रशंसा और अनेकपहेलियाँ और उसके समाधान हैं ।
- अभिचार सूक्त -
इन सूक्तों में दैत्य , राक्षस , शत्रु आदि के उद्देश्य से किए जाने वाले विविध अभिचार तथा उनकी विधियाँ वर्णित हैं ।
- दार्शनिक सूक्त -
अथर्ववेद के अनेक सूक्तों में ब्रह्मा , विराट , माया , ईश्वर , सूत्रात्मा , एकेश्वरवाद , जीवात्मा , प्रकृति , पुनर्जन्म ,स्वर्ग , नरकादि का वर्णन है ।
इसके अतिरिक्त भूमि सूक्त , प्रसाद सूक्त , सौमनास्य सूक्त आदि का भी वर्णन मिलता है ।
॥ इति ॥
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