समासान्त
पूर्व में बताये गये समास के पाँच भेदों के अतिरिक्त जो समास बचता है ,उसे समासान्त कहते है । जिसका विस्तृत वर्णन हम नीचे कर रहे हैं ।
( समासान्त ‘अ’ प्रत्ययविधिसूत्रम् )
ऋक्-पूरप्(ब)धूः-पथाऽम् आऽनक्षे ५ । ४ । ७४ ॥
अ अनक्ष् इति च्छेदः ।ऋृगाऽऽद्यन्तस्य ‘अ’ प्रत्ययोऽन्तावयवः, अक्षे या धूः तदन्तस्य तु न । अर्धर्चः । विष्णु-पुरम् । विमलाऽऽपं सरः । राजधुरा । अक्षे तुअक्षदूः । दृढदूरक्षः । सखिपथः ।रम्यपथो देशः ।
अर्थात् ऋक् , पुर् , अप् , धुर् , और पथिन् ये शब्द जिस समास अन्त में हों, उस समास को समासान्त अ प्रत्यय होता है । परन्तु अक्ष-रथ के चक्रा कामध्यभाग में जो धुर्-धुरा-तदन्त को न हो ।
सूत्र में स्थित ‘आनक्षे’ इस पद में ‘अ अनक्षे’ ऐसा पदच्छेद है । ‘अनक्षे’ का निषेध केवल ‘धुर्’ शब्द के लिये होता है । क्योंकि उसी में योग्यता है , औरौं मेंनहीं ।
उदाहरण-
अर्धर्चः - अर्धम् ऋृचः
विष्णु-पुरम् - विष्णोः पूः
विमलाऽऽपं सरः - विमला आपो यत्र
राजधुरा - राज्ञो धू:
दृढ-धूः - दृढा धर्मस्य
सखि-पथः - सख्युः पन्थाः
रम्य-पथो देशः - रम्याः पन्थानो यस्य यस्मिन् वा
अक्ष्णोऽदर्शनात् ५ । ४ । ७६ ॥
अ-चक्षुःपर्यायाद् अक्ष्णोऽच् स्यात् समासान्तः । गवाम् अक्षीव - गवाऽक्षः ।
अर्थात् नेत्र वाचक से भिन्न अक्षि शब्द को समासान्त अच् प्रत्यय हो ।
उदाहरण -
गवाऽक्षः - गवाम् अक्षि इव
उपसर्गाद् अध्वनः ५ । ४ । ८५ ॥
प्रगतोऽध्वानं प्राऽध्वः-रथः ।
अर्थात् उपसर्ग से पर् अध्वन् शब्द को समासान्त अच् प्रत्यय हो ।
उपसर्ग शब्द यहाँ प्रादि के लिए प्रयुक्त हुआ है ।
उदाहरण -
प्राऽध्वो रथः - प्रगतोऽध्वानम्
न पूजनात् ५ । ४ । ६९ ॥
पूजनाऽर्थात् परेभ्यः समासान्ता न स्युः ।
( वा ) स्वतिभ्यामेव । सु-राजा । अति-राजा ।
अर्थात् प्रशंसार्थक शब्दों से परे पदों के समासान्त प्रत्यय न हो ।
( वा ) सु और अति इन दो प्रशंसार्थकों से पर होने पर ही शब्दों को समासान्त प्रत्ययों का निषेध हो ।
उदाहरण -
सु-राजा - शोभनो राजा
अति-राजा - अतिक्रान्तो राजानम् ।
॥ इति समासान्ताः ॥
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