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Showing posts from January, 2023

संस्कृत क्यों सीखनी चाहिए?

 संस्कृत सीखने के इच्छुक होने के कई कारण हो सकते हैं: 1. यह भारत की एक प्राचीन और शास्त्रीय भाषा है, और इसकी एक समृद्ध साहित्यिक परंपरा है। 2. संस्कृत वेदों और उपनिषदों सहित कई हिंदू धार्मिक ग्रंथों में प्रयुक्त प्राथमिक भाषा है। 3. यह अत्यधिक विभक्त और संरचित भाषा है, जो भाषा विज्ञान या भाषा सीखने में रुचि रखने वालों के लिए उपयोगी हो सकती है। 4. संस्कृत सीखना प्राचीन भारत की संस्कृति और दर्शन की गहरी समझ भी प्रदान कर सकता है। 5. यह उन लोगों के लिए भी उपयोगी हो सकता है जो हिंदी, बंगाली और मराठी जैसी अन्य भारतीय भाषाओं को सीखने में रुचि रखते हैं। 6. कुछ लोगों का यह भी मानना है कि संस्कृत सीखने और बोलने से आध्यात्मिक लाभ हो सकता है। 7. संस्कृत को सबसे पुरानी जीवित भाषाओं में से एक माना जाता है और इसका अध्ययन ऐतिहासिक भाषाविज्ञान के बारे में अंतर्दृष्टि प्रदान कर सकता है, जो अध्ययन का एक क्षेत्र है जो देखता है कि समय के साथ भाषाएं कैसे बदलती हैं। ॥ इति ॥ हम आशा करते हैं , कि आपको संस्कृत भाषा क्यों सीखनी चाहिए प्रश्न का उत्तर आपको पसंद आया होगा ।  संस्कृत भाषा के बारे में और अधिक पढ़ने के

ऋग्वेद संहिता

ऋग्वेद   विश्व   साहित्य   का   प्राचीनतम   ग्रन्थ   है   ।   यह   विभिन्न   देवताओं   के   स्तुतिपरक   मन्त्रों   का   संकलन   है   और   इसकी   उत्पत्ति   विराट   पुरूष   के   मुख   से   मानी   गई है   ।   जिसके   द्वारा   देवता   की   स्तुति   अथवा   अर्चना   की   जाए  ,  उसे   ऋक्   कहते   हैं  -  ‘ ऋच्यते   स्तूयते   यया   इति   ऋक् ’  और   ऐसी   ऋचाओं   के   संग्रह   का   नाम   ही ऋग्वेद   है   ।इसके   पुरोहित  ‘ होता ’  है  ,  जो   कि   देवताओं   का   आह्वान   करता   था   । ऋग्वेद   में  ‘ ज्ञान ’  की   महत्ता   का   प्रतिपादन   किया   गया   है   ।   ऐसा   माना   जाता   है   कि   सृष्टि   के   आरम्भ   में   ईश्वर   ने   वेदों   का   ज्ञान   अग्नि  ,  वायु  ,  आदित्य  ,  और अंगिरा   नामक   चार   ऋषियों   को   प्रदान   कर   दिया   था   ।   इसी   कारण   ऋषियों   को   मन्त्रों   का   द्रष्टा   कह   गया  ,  स्रष्टा   नहीं  -  ‘ ऋषयो   मन्त्रदृष्टारः   न   स्रष्टारः ’  । मन्त्रदृष्टा   इन   ऋषियों   ने   गुरू   शिष्य   परम्परा   का   निर्वाह   करते   हुए   इन   मन्त्रों   को   अपने   श

अथर्ववेद संहिता

अथर्ववेद   का   अर्थ   है  -  अथर्वों   का   वेद   या   अभिचार   मन्त्रों   का   ज्ञान   अथर्वन्   ऋषि   के   नाम   पर   इस   वेद   का   नाम   अथर्ववेद   पड़ा   ।   इसे   भृग्वंगिरा   वेद  ,  अथर्वांगिरोवेद  ,  भिषग्वेद  ,  क्षत्रवेद   तथा   ब्रह्मवेद   के   नाम   से   भी   जाना   जाता   है   ।इसका ऋत्विक ब्रह्मा है । इस वेद के देवता सोम तथा आचार्य सुमन्तु हैं ।अथर्ववेद को वेदत्रयी ( ऋक् , यजुर्वेद , सामवेद ) की अपेक्षा कम महत्व दिया गया है क्योंकि इसमें अधिकांशतः अभिचारात्मक सूक्त नहीं हैं । अथर्ववेद की नौ शाखाएँ हैं - पिप्पलाद् स्तोद मोद शौनकीय जाजल जलद ब्रह्मवेद देवदर्श चारणवैद्य   । इनमें   से   सम्प्रति   पिप्पलाद   और   शौनकीय   यो   दो   शाखाएँ   ही   प्राप्त   होती   हैं   ।   इसमें   २०   काण्ड  ,  ७३०   सूक्त   और   लगभग   ६०००   मन्त्र   हैं   । इस   जीवन   को   सुखमय   तथा   दुःखरहित   बनाने   के   लिए   जिन - जिन   साधनों   की   आवश्यकता   होती   है  ;  उनकी   सिद्धि   के   लिए   नाना   प्रकार   के   अनुष्ठानों   का विधान   इस   वेद   में   किया   गया   है   ।   संहिता   क